मौन है स्त्री
रचनाकार - रिशिका
कक्षा - दसवीं - अ
मौन है स्त्री
निःशब्द
नहीं
आवाज
है
पर
बोलती नहीं
ज़ज्बात
हैं पर
मुंह
खोलती नहीं
चाहत
है पर
किसी
से उम्मीद नहीं
पहल
ना करती पर
किसी
से डरती नहीं
जीत
की चाह नहीं
हार
मानती नहीं
आईना
है आर
बिखरती
नहीं
दर्द
से भरी है पर
जीना
छोडती नहीं
समझदार
इतनी है कि
हर
झूठ पकड़ लेती है
और
नासमझ इतनी है कि
फिर
भी यकीन कर लेती है
अर्थ
आखिर है क्या
सभी
शब्दों का अर्थ मिल सकता है
किन्तु
जीवन का अर्थ
जीवन
जी कर और
सम्बन्ध
का अर्थ
सम्बन्ध
निभा कर ही
मिल सकता है